उस मुस्कान को मिस मत कीजिए जो फ़ोन देखने से चूक जाती है। (एक घंटे की आज़ादी!)
हम सब एक ही दौड़ में लगे हैं - नोटिफ़िकेशन की दौड़, लाइक्स और कमेंट्स की दौड़। सुबह आँख खुलते ही सबसे पहले फ़ोन की स्क्रीन देखते हैं और रात को सोने से पहले भी यही करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि इस छोटी सी स्क्रीन ने हमें अपनी ज़िंदगी से कितना दूर कर दिया है?
प्यार सिर्फ़ दूसरों को 'आई लव यू' कहने से नहीं होता, बल्कि उनके साथ बिताए गए उन पलों में भी होता है जब हम पूरी तरह से मौजूद होते हैं।
मैंने हाल ही में एक प्रयोग किया। मैंने अपने फ़ोन को एक घंटे के लिए दूर रख दिया। पहले 15 मिनट बेचैनी हुई। बार-बार हाथ फ़ोन की तरफ़ जा रहा था। ऐसा लगा जैसे कुछ अधूरा है। लेकिन धीरे-धीरे, एक अजीब सा सुकून महसूस हुआ।
मैंने खिड़की से बाहर देखा, जहाँ पक्षी चहचहा रहे थे। मैंने अपनी माँ की आवाज़ सुनी, जो रसोई में गुनगुना रही थीं। मैंने अपने छोटे भाई-बहन को बिना किसी रुकावट के खेलते हुए देखा। मैंने एक कप गरम चाय पकड़ी और उसकी ख़ुशबू को महसूस किया। मैंने उन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दिया, जिन्हें मैं रोज़ नज़रअंदाज़ कर देता था।
उस एक घंटे में मुझे एहसास हुआ कि हम अनजाने में अपनी ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत पलों को सिर्फ़ इसलिए खो रहे हैं क्योंकि हमारा ध्यान कहीं और है। हम फ़ोन पर दुनिया से जुड़े रहने की कोशिश में असली दुनिया को खो रहे हैं।
यह पोस्ट सिर्फ़ फ़ोन को छोड़ने के बारे में नहीं है, बल्कि उस प्यार को फिर से महसूस करने के बारे में है जो हमारे चारों तरफ़ मौजूद है - अपने परिवार के लिए, दोस्तों के लिए और सबसे बढ़कर, ख़ुद के लिए।
तो अगली बार जब आप किसी से बात कर रहे हों या किसी के साथ बैठे हों, तो अपना फ़ोन दूर रख दें। उन आँखों में देखें, उस बातचीत को महसूस करें, उस पल को जीएँ। क्योंकि असली 'दिल की डायरी' आपके फ़ोन में नहीं, बल्कि आपके दिल में बनती है।
यह पोस्ट उन सभी लोगों के साथ शेयर करें जिन्हें आप प्यार करते हैं और जिन्हें आप इस डिजिटल दुनिया से बाहर निकालना चाहते हैं।
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