प्रेम की चंचल लहरें: एक भावनात्मक और शृंगारिक कविता



परिचय:

कभी-कभी प्रेम सिर्फ भाव नहीं होता, वह एक ज्वार होता है — जो हृदय से शुरू होकर तन और मन दोनों को बहा ले जाता है। इस कविता में भावनाओं की वही लहरें हैं — जहां आकर्षण, अभिलाषा और आत्मीयता एक साथ बहती हैं। यह रचना उस मौन संवाद को शब्द देती है जो आंखों में छिपा होता है, और हृदय में गूंजता है।


कविता:

साफ़ झलकती हल्की सी चूनर, करती मन को व्याकुल प्रिये,
कमर की वह चंचल लहर, भर दे भीतर चंचल हूक प्रिये।

नयनों से जो भाव उभरते, तन-मन को पुलकित करते हैं,
कब तक रोकें ज्वार प्रेम का, जब भाव गहरे उभरते हैं।

जब अंग-अंग तृप्त हुआ हो, फिर भी मन प्यासा रह जाए,
जहां तुम्हारी छाया जाए, वहाँ विरह की अग्नि सुलग जाए।

बस थोड़ी सी चेष्टा भर दो, यह सूनी जवानी महकेगी,
रग-रग में जब प्रेम जगेगा, चेतनाई तक दहकेगी।